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आम का पेड़

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Aam ka पेड़   *एक बच्चे को आम का पेड़ बहुत पसंद था।* *जब भी फुर्सत मिलती वो आम के पेड़ के पास पहुंच जाता।*  *पेड़ के उपर चढ़ता,आम खाता,खेलता और थक जाने पर उसी की छाया मे सो जाता।*  *उस बच्चे और आम के पेड़ के बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया।* *बच्चा जैसे-जैसे बडा होता गया वैसे-वैसे उसने पेड़ के पास आना कम कर दिया।*  *कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।* *आम का पेड़ उस बालक को याद करके अकेला रोता।* *एक दिन अचानक पेड़  ने उस बच्चे को अपनी तरफ आते देखा और पास आने पर कहा,* *"तू कहां चला गया था? मै रोज तुम्हे याद किया करता था। चलो आज फिर से दोनो खेलते है।"* *बच्चे ने आम के पेड़ से कहा,* *"अब मेरी खेलने की उम्र नही है*  *मुझे पढ़ना है,लेकिन मेरे पास फीस भरने के पैसे नही है।"* *पेड़ ने कहा,*  *"तू मेरे आम लेकर बाजार मे बेच दे,* *इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।"* *उस बच्चे ने आम के पेड़ से सारे आम तोड़ लिए और उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।* *उसके बाद फिर कभी दिखाई नही दिया।*  *आम का पेड़ उसकी राह देखता रहता।* *एक दिन वो फिर आया और कहने लगा,* *"अब म...

Motivational story

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  झांसी के अंतिम संघर्ष में महारानी की पीठ पर बंधा उनका बेटा दामोदर राव (असली नाम आनंद राव) सबको याद है. रानी की चिता जल जाने के बाद उस बेटे का क्या हुआ वो कोई कहानी का किरदार भर नहीं था, 1857 के विद्रोह की सबसे महत्वपूर्ण कहानी को जीने वाला राजकुमार था जिसने उसी गुलाम भारत में जिंदगी काटी, जहां उसे भुला कर उसकी मां के नाम की कसमें खाई जा रही थी. अंग्रेजों ने दामोदर राव को कभी झांसी का वारिस नहीं माना था, सो उसे सरकारी दस्तावेजों में कोई जगह नहीं मिली थी. ज्यादातर हिंदुस्तानियों ने सुभद्रा कुमारी चौहान के कुछ सही, कुछ गलत आलंकारिक वर्णन को ही इतिहास मानकर इतिश्री कर ली. 1959 में छपी वाई एन केलकर की मराठी किताब ‘इतिहासाच्य सहली’ (इतिहास की सैर) में दामोदर राव का इकलौता वर्णन छपा. महारानी की मृत्यु के बाद दामोदार राव ने एक तरह से अभिशप्त जीवन जिया. उनकी इस बदहाली के जिम्मेदार सिर्फ फिरंगी ही नहीं हिंदुस्तान के लोग भी बराबरी से थे. आइये, दामोदर की कहानी दामोदर की जुबानी सुनते हैं – 15 नवंबर 1849 को नेवलकर राजपरिवार की एक शाखा में मैं पैदा हुआ. ज्योतिषी ने बताया कि मेरी कुंडली में राज ...

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